उम्मीदों की खिड़की | कभी अगर मैं रूठ जाऊं | खोजने से मिल जाता है
उम्मीदों की खिड़की सदैव ले आती है रोशनी की किरण
मुर्दों में भी जान आ जाती है ,
आकाशी ताकतें करवटें लेने लगती हैं
उम्मीदों की किरण हकीकत में बदलने लगती हैं
अधिक लगन से काम करने की प्रेरणा जगने लगती है
सारा जहाँ इन्द्रधनुषी बन जाता है ।
– Manju Lata
उम्मीदों की खिडकी से झांकता जगमगाता सूरज,
उसकी किरणों से छँट गया गमों का अंधेरा।
मन आँकता खुशी लबरेज़,
उससे हट गया परेशानियों का घेरा ।
उम्मीदों की खिडक़ी से दिखाई दिये
कुछ अपने,कुछ अधूरे सपने।
उन अपनों ने दिया साथ,
रखा कंधे पर हाथ,
पूरे हुए सपने, पूरे हुए ख्वाब ।
उम्म्मीदों की खिडकी से दिखा चाँद
चमकीला, टूटा दिल फिर से हुआ सपनीला।
सनम से यूँ मिलना हुआ,
दिल थोडा बैचन हुआ थोडा हुआ रंगीला।
उम्मीदों की खिडक़ी से देखा फैला आसमान ,
मैं भी कुछ बडा कर सकती हूँ,
बन सकती हूँ महान ।
बस यही तमन्ना है कितना भी ऊपर उठ जाऊँ ,
हाथ में मेरे ही रहे कमान ।
– Veena Garg
उम्मीदों की खिड़की से…….
कुछ धुँधले से ख़्वाब दिखते हैं……..!
– Seema Bhargave
ज़िन्दगी मैं जब आशाओं के
दरवाज़े बंद हो जाएँ।
तो उम्मीद की खिड़की को
खुला रखना ।
इस खिड़की से खुला आसमान
दिखता है ।
रात का चाँद दिखता है ।
ख़्वाबों की रोशनी झाँकती है
उसे समेट लेना ।
ज़िंदगी को इस खिड़की के सहारे
की ज़रूरत होती है ।
वरना बंद दीवारें जीने कँहा देती हैं।
मन को कैद कर लेती हैं ।
मन तो उड़ना चाहता है ।
आसमान को छूना चाहता है ।
उम्मीदों की खिड़की उसके लिए
खोलकर रखना……
– Pratibha Ahuja Nagpal

अंतर्मन में विह्वलता,
रात अमावस की काली।
उम्मीदों की खिड़की छोटी सी,
फैला दे उर में लाली।
Ruchi Asija