जब सारी दुनिया मेरी | मौके का फ़ायदा | समय और ज़रूरत बदलते | हकीकत से रूबरू हुए तो

समय और जरूरत के बदलते ही
बदल जाती है लोगों की नजरें भी
क्या मिसाल दूं मैं इस बदलाव को
संभाल लूं मैं उनके इस बिखराव को
या फिर पकड़ लूं मैं ,उनके लड़खड़ाते पांव को!!
— Pushpa Pandey


समय और ज़रूरत बदलते ही ईश्वर की बनाई कृतियों में
मानव सर्वप्रथम बदलता है।
बदलाव जीवन का एक प्रमुख अंग है।
बदलिए, परंतु मानवता को कभी न भूले।
Kavita Prabha


जब सारी दुनिया मेरी | मौके का फ़ायदा | समय और ज़रूरत बदलते | हकीकत से रूबरू हुए तो
जब सारी दुनिया मेरी | मौके का फ़ायदा | समय और ज़रूरत बदलते | हकीकत से रूबरू हुए तो

ये पत्ते ये प्रकृति मुझे लगती प्यारी,
सुन्दर लगती दुनिया मुझे तब सारी,
बालक हूँ मुझे अपनी ज़िन्दगी जीने दो,
प्रकृति से कर प्यार मैं होऊँ बलिहारी।।
— Rajmati Pokharna Surana


कितना कुछ कह जाती हैं
ये तुम्हारी मुस्कुराहट
बसंत हो या पतझड़ हर पल खिलखिलाती हैं
ये तुम्हारी मुस्कुराहट ……..
काश की ये उम्र भी ले पाता
मासूमियत तुम्हारी
तब हम भी मुस्कुराते
और ये उम्र भी गुनगुनाती……
— Radha Shailendra


हकीकत से रूबरू हुए तो
हकीकत से रूबरू हुए तो जाना कि
अपनों से रिश्ता निभाना ज़रूरी होता है क्योंकि
मुश्किल समय में अपने ही साथ देते हैं।
हमें सबको साथ लेकर आगे बढ़ना चाहिए।
आगे बढ़ने की जद्दोजहद में अपनों को पीछे मत छोड़िए।
— Kavita Prabha


हकीकत से रूबरू हूँ मैं कि
लोगों की इस भीड़ में
न जाने कितने अजनबी हर रोज मिलते हैं
कुछ खास बनकर कुछ बैगाने बनकर..
कहाँ रह जाते हैं वो अजनबी भी
ज़ब छू जाते हैं दिल के तार
महसूस करते हैं वो दर्द दिल का
जहाँ छिपी होती हैं अनगिनत बात….
अजनबी सिर्फ शब्द के रह जाते हैं
ये खास रिश्ते
ज़ब बिन बोले ही समझ जाते हैं सारी बातें…..
अपने और पराये बड़ा बारीक़ सा फर्क हैं इनमें
बिन कहे जो पढ़ ले आँखों की भाषा
उनमें ही तो बसी हैं अपनेपन की परिभाषा
जो साथ रहकर भी दर्द नहीं समझ पाते
वही तो रह जाते हैं बनके अजनबी जीवन में!
— Radha Shailendra

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