अतिथि Post: Kumar Harsh, बोतल भरके सपने
अतिथि Post: Kumar Harsh, बोतल भरके सपने तराज़ू मैं तोले थे आज सोने के कुछ सिक्के उसने, आसमान सिर पे था, पैर ज़मीन पर मेरे, घर आया एक नन्हा सा सपना था, क़ैद कर लिया बोतल मैं मैंने उसे, चमक थी उसकी सोने से कहीं ज़्यादा, कहता था वो कभी कभी, हुज़ूर कब है आज़ाद … Read more